[Intro]
सुनो ये आवाज़, ये कहानी पुरानी,
हर गली, हर शहर, भूख की जुबानी।
पेट की आग से जलती है दुनिया,
कौन सुनेगा इस दर्द का किस्सा?
[Verse 1]
रोटी के लिए हर दिन है जंग,
गरीबी के बीच सपनों का रंग।
बच्चा रोता है, मां के हाथ खाली,
घर में बस गूंजती है चुप्पी भारी।
थाली में खालीपन, आंखों में आस,
खुदा भी देखे, क्यों रखता निराश?
ये भूख कोई मज़ाक नहीं है,
सिस्टम की ये साजिश नहीं सही है।
[Hook/Chorus]
भूख की आग, कब बुझेगी ये आग?
हर इंसान को चाहिए उसका भाग।
न इज्जत, न नाम, बस रोटी का सवाल,
भूख का जवाब दे, ओ सरकार।
[Verse 2]
गांव में खेत पर मेहनत बहाए,
पर किसान को मिलता क्या? कुछ भी न आए।
शहर में मजदूर की हालत खराब,
पसीना बहा, पर नहीं मिला हिसाब।
गरीब की आवाज़ दबाई गई,
सच की जगह साजिश रचाई गई।
क्या यही इंसानियत का धर्म है?
भूख से मरता बच्चा, कहां कर्म है?
[Hook/Chorus]
भूख की आग, कब बुझेगी ये आग?
हर इंसान को चाहिए उसका भाग।
न इज्जत, न नाम, बस रोटी का सवाल,
भूख का जवाब दे, ओ सरकार।
[Bridge]
रोटी, कपड़ा, मकान है हक हमारा,
पर यहां बस खेल हो रहा सियासत का।
भूख का मज़ाक उड़ाना बंद करो,
हर पेट भरे, ये फरमान करो।
ज़िंदगी का हक सबको चाहिए,
गरीब के हक को कोई न छीने।
[Verse 3]
हर झुग्गी में सपने दब जाते,
सड़क पर बच्चे भूखे सो जाते।
बड़ी बड़ी बातें, बड़ी बड़ी बातें,
असल में भूख की हालत बिगड़ जाती।
क्या बदलेगा? या सब यही रहेगा?
भूख का ये दर्द कोई सुनेगा?
[Outro]
सुनो ये आवाज़, ये आवाज़ भूख की,
पेट की आग को बुझाओ, हक की।
हर थाली भरे, हर पेट मुस्कुराए,
इंसान इंसान को इंसान बनाए।

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