"अग्नि की पुकार" (The Call of the Flame) अंतरा 1 तुमने मिटाया था हर निशान, जमीन से छीन लिया था आसमान। लेकिन राख से उठेगी काया, हर दिल बोलेगा ये ही माया। तुमने लूटा जो घर, जो दिल, हर खंडहर से निकलेगा मंज़िल। धरती की हर छाती चीखेगी, सत्य की गंगा फिर से बहेगी। संगीतमय कोरस ओ रे अग्नि, ओ रे ज्वाला, तू है सत्य का उजाला। तू ही राह, तू ही आस, तू ही जीवन का विश्वास। जहाँ घना अंधेरा था, वहाँ खिलेगा नया सवेरा। अंतरा 2 तुमने जलाया जो दीपक यहाँ, उसकी लौ ने रचा नया जहाँ। हर आँसू से बनी जो धार, वो गढ़ेगी सच्चाई का संसार। तुमने तोड़ी थी हर ज़ंजीर, लेकिन हिम्मत न कर सका अधीर। हर पत्थर से बनेंगे गीत, हर कण में गूँजेगा संगीत। संगीतमय कोरस ओ रे अग्नि, ओ रे ज्वाला, तू है सत्य का उजाला। तू ही राह, तू ही आस, तू ही जीवन का विश्वास। जहाँ घना अंधेरा था, वहाँ खिलेगा नया सवेरा। सेतु हवा में उठेगी फिर वो पुकार, धरती गाएगी प्रेम का त्यौहार। हर इंसान का होगा नाम, यादों से मिटेगा न कोई मुकाम। रंग बिखरेंगे, उम्मीद होगी, जिंदगी की नई जीत होगी। साथ चलेगा हर जन-जन, न्याय बनेगा धर्म-संगठन। कोरस (अंतिम) ओ रे अग्...
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